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UP Politics: यूपी में दलित वोटबैंक को लेकर चिंता में है बीजेपी,शीर्ष नेतृत्व ने इस नेता को सौंप दी है कमान

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UP Politics: लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे भाजपा के लिए बेहद प्रतिकूल रहे। केंद्र में NDA गठबंधन की सरकार तो बन गई लेकिन भाजपा को जो उम्मीद थी भाजपा अबकी बार 400 पार का जो नारा दे रही थी उस पर वो कहीं दूर दूर तक भी नहीं दिखाई दी .ख़ासकर उत्तरप्रदेश की बात करें तो यहाँ पर भाजपा को भारी नुकसान हुआ है.

2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जहाँ यूपी की 80 में से 62 सीटों पर जीत हासिल की तो वहीँ इस बार बीजेपी सिर्फ 33 सीटों पर सिमट कर रह गई। इसके कई कारण माने जा रहे हैं। बसपा के कमजोर होने का खामियाजा भी बीजेपी को ही भुगतना पड़ा। इसका सबसे बड़ा कारण ये रहा की विपक्षी इंडिया गठबंधन जनता के बीच इस बात का प्रचार करने में सफल रहा की भाजपा अगर 400 सीटें जीतती है तो वो संविधान बदल देगी और आरक्षण को ख़त्म कर देगी।

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UP Politics में भाजपा के लिए नई चिंता आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर भी हैं जो बसपा के पारम्परिक वोट माने जाने वाले जाटव वोटबैंक पर अपनी नजर गड़ाए बैठे हैं. तो दूसरी और वो मुस्लिम वोटबैंक को साधने की भी पूरी कोशिश कर रहें हैं.लोकसभा से ले कर मीडिया के इंटरव्यूज तक हर जगह उनके भाषण के केंद्र में कहीं न कहीं मुस्लिम समुदाय होता ही है। इन्ही सब मसलों पर मंथन करने भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष 2 दिन की लखनऊ यात्रा पर हैं। उनके इस दौरे का केंद्र बिंदु भी दलित वोटबैंक ही है।

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UP Politics: चंद्रशेखर ने बीजेपी के दांव से उसी को दी पटखनी 

लोकसभा चुनाव में सबसे अधिक चौंकाने वाले नतीजे नगीना लोकसभा सीट पर ही आए ,यहाँ चंद्रशेखर रावण ने भाजपा ,कांग्रेस ,सपा और बसपा सभी को पछाड़ते हुए लगभग डेढ़ लाख मतों से जीत हासिल की। यहाँ भी भाजपा को उसका दांव ही उल्टा पड़ गया। दरअसल चुनाव के दौरान भाजपा ने चंद्रशेखर को वाय प्लस सुरक्षा दे दी। भाजपा की सोच ये थी की ऐसे में चद्रशेखर को जनता एक प्रभावी व्यक्तित्व के रूप में देखेगी और वो मजबूती से चुनाव लड़कर वोट कटवा साबित होंगे और इसका फायदा बीजेपी को मिल जाएगा।

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लेकिन हुआ उल्टा भाजपा ने जिस बसपा को रोकने ये चल चली थी वो १३ हजार 272 वोटों पर ही सिमट गई और चन्द्रशेखर ने भाजपा के दांव से ही उसे पटखनी देते हुए रिकॉर्ड मतों से जीत दर्ज की.
अब भाजपा के सामने दलितों को ये समझाना सबसे बड़ी चुनौती है की संविधान बदलने की बात सिर्फ विपक्ष का एक प्रोपेगेंडा था असल में ऐसी कोई बात नहीं है।

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तो वही दूसरी चुनौती बसपा से दूर हुए दलित वोटर्स को चंद्रशेखर के पाले में जाने से रोकना है। भाजपा इसके लिए भी रणनीति बनाने पर काम कर रही है.भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री बीएल संतोष ने इसको लेकर चिंतन किया है और वो अब पार्टी के दलित नेताओ के साथ इस मुद्दे पर बैठक भी कर रहे हैं ।

17 आरक्षित सीटों में 8 सीटों पर सिमट गई बीजेपी 

आपको बता दें कि उत्तरप्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 17 सीटें आरक्षित श्रेणी की हैं। भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में इन 17 में से सभी 17 सीटों पर जीत हासिल की थी। तो वहीँ 2019 के लोकसभा चुनाव में भी इन 17 आरक्षित सीटों में से 14 सीटें भाजपा की झोली में आई थी.लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा सिर्फ आठ सीटों पर सिमट कर रह गई है.

यानी इसका सीधा मतलब ये है की UP Politics में दलित वोटर्स इस बार भाजपा से दूर हुए है अब देखने वाली बात ये होगी की भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री बीएल संतोष दलित वोटबैंक को साधने में सफल हो पाएंगे या नहीं,शीर्ष नेतृत्व की जिम्मेदारी पर करे उतरेंगे या नहीं? इस up politics पर आपकी क्या राय है हमें कमेंट कर के जरूर बताऐं।

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